कोई वादा तो उसने किया न था,
जाने किस उम्मीद में कट गई जिंदगी ।
कभी अपने, कभी बेगाने से लगते हैं वो,
इसी शशोपंज में कट गई जिंदगी ।
उनके संग जीने की चाहत लिये,
मौत के इंतजार में कट गई जिंदगी ।
कभी तो आयेगा उनका पैगाम मेरे नाम,
राहें तक तक कट गई जिंदगी ।
किया होगा उन्होने कभी मेरा इंतजार,
इसी तसल्ली में कट गई जिंदगी ।
Sunday, November 11, 2007
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3 comments:
आप की गजल का आखिरी शेर गालिब की याद दिलाता है..
ये ना थी हमारी किस्मत की विसाले यार होता।
अगर और जीते रहते यही इंन्जार होता॥
बढिया गजल है।बधाई।
कोई वादा तो उसने किया न था,
जाने किस उम्मीद में कट गई जिंदगी ।
बहुत सही कहा है । बधाई ।
उम्दा भाब
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