Sunday, November 11, 2007

गज़ल!

कोई वादा तो उसने किया न था,
जाने किस उम्मीद में कट गई जिंदगी ।

कभी अपने, कभी बेगाने से लगते हैं वो,
इसी शशोपंज में कट गई जिंदगी ।

उनके संग जीने की चाहत लिये,
मौत के इंतजार में कट गई जिंदगी ।

कभी तो आयेगा उनका पैगाम मेरे नाम,
राहें तक तक कट गई जिंदगी ।

किया होगा उन्होने कभी मेरा इंतजार,
इसी तसल्ली में कट गई जिंदगी ।

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

आप की गजल का आखिरी शेर गालिब की याद दिलाता है..
ये ना थी हमारी किस्मत की विसाले यार होता।
अगर और जीते रहते यही इंन्जार होता॥

बढिया गजल है।बधाई।

Asha Joglekar said...

कोई वादा तो उसने किया न था,
जाने किस उम्मीद में कट गई जिंदगी ।

बहुत सही कहा है । बधाई ।

Pramendra Pratap Singh said...

उम्‍दा भाब

www.blogvani.com