Saturday, November 17, 2007

गज़ल!

मेरी मोहब्बत को दोस्ती का नाम न दो,
मोहब्बत करने वालों को ग़ल्त पैगाम न दो ।

साथ चलोगे तो रस्ते खुद ही मिल जायेंगें,
कोई ऐसी सुबह नहीं जिसकी शाम न हो ।

दुनिया के तानों से डर के क्यों बैठ गये,
कोई ऐसा शख्स नहीं जो कभी बदनाम न हो ।

जिंदगी की उलझनों को बहाना न बनाओ,
उलझनें न हों तो कोई भी कामयाब न हो ।

सोच में क्यों पड़े हो, मंज़ूरे-खुदा होने दो,
बस चुप ही रहो, अगर कोई जवाब न हो ।

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया गजल है!!यह शेर बहुत अच्छा लग-

सोच में क्यों पड़े हो, मंज़ूरे-खुदा होने दो,
बस चुप ही रहो, अगर कोई जवाब न हो ।

Shiv said...

इतने अच्छे खयालात कवि मन से ही उपजते है....आपकी गजल पढ़कर बहुत सुकून मिलता है....लेखनी की अद्भुत चाल जो इंसान को रास्ता दिखाए.

बालकिशन said...

इतनी अच्छी गजल के लिए साधुवाद के हक़दार हैं....मेरी तरफ़ से कुबूल कीजिये साधुवाद.

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