फिर
एक और दिन
तेरी
मधुर यादों से
भरा हुआ
पर
यह मन
अंदर ही अंदर
थोड़ा
डरा हुआ
कि
दिन कहीं
जल्दी से
बीते न
रात का आवरण
कहीं
जीते न
और
भटक जाऊँ
फिर से
मैं
इन अंधेरों में
और
रात का सूनापन
कभी
बीते न !
Monday, November 19, 2007
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