Friday, November 16, 2007

मेरी हँसी!

मेरी हँसी, मेरे ग़मों की नकाब है,
उनके ढाए सितमों का जवाब है,
वो सोचते हैं उनकी ज्यादती से मिट जायेंगें हम,
अभी तो करना बाकी उनका हिसाब है ।

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मेरा हँसना न समझना कि खुशियों का है मिलना,
तू जो न हो, मेरी जिंदगी बनी इक टूटा सपना ।

दर्द दिल ने जो है पाला, उसमें तूने रंग डाला,
कैसे कह दूं मैं बता तू, ग़म ने तेरे मार डाला,
तेरे ग़म में भी मैं खुश हूँ, सारी दुनिया को दिखाना ।

अश्क बहते हैं कहाँ अब, सूनी आँखें हैं कहती सब,
रास्ते भी हैं कहतें अब, वो आयेंगें यहाँ कब,
अब तो राहें भी हैं कहतीं, इक बार फिर से आना ।

3 comments:

बालकिशन said...

वाह! आपका ही इंतजार कर रहा था . बहुत खूबसूरत लिखा है. मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ.
तू जितने घात करेगा मुझपर, मैं उतना विश्वाश करूंगा तुझपर
तेरी अपनी फितरत है मेरी अपनी फितरत है.

डॉ० अनिल चड्डा said...

बहुत खूब बालकिशन जी । प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद ।

नीरज गोस्वामी said...

अब तो राहें भी हैं कहतीं, इक बार फिर से आना ।
क्या बात है...वाह
नीरज

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