Saturday, November 17, 2007

गज़ल!

कोई उम्मीद तो नहीं तुमसे है,
फिर भी नाउम्मीद नहीं हूँ मैं ।

कोई सिर्फ बात ही करे हमसे,
इस बात का मुरीद नहीं हूँ मैं ।

उम्र भर खुद को जलाया मैंने,
पर किसी आँख का दीद नहीं हूँ मैं ।

खुदा है गुनहगार मेरा नज़र फेर कर,
तभी तो उसका आबिद नहीं हूँ मैं ।

जो दिया तूने वही तो लौटा पाऊँगा,
तभी हँसीं गज़लों का अदीब नहीं हूँ मैं ।

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