Thursday, December 20, 2007

गज़ल!

दफन हो जायेंगी यादें ज़हन की कब्र में,
इन यादों को कफन तो पहना दो ज़रा ।

कोशिश तो करेंगें यादें जीएँ न दोबारा,
तुम भी हमें कोई तदबीर सुझा दो ज़रा ।

दिल बार-बार सोचता है तुम्हारे लिये क्यों,
तुम्ही इस बात की वज़ह समझा दो ज़रा ।

वीरानीयों ने बार-बार सदा दी बहारों के लिये,
कब तलक आओगे तुम ये बता दो ज़रा ।

Thursday, December 13, 2007

गज़ल!

कब तक खुद से दिल की बात छुपाओगी,
खुद भी तड़पोगी और हमें भी सताओगी ।

इश्क वो चिंगारी है जो बुझाने से न बुझे,
जो आग लग चुकी है, उसे कैसे बुझाओगी ।

दास्तान-ए-दिल बहुत लम्बी हो चुकी है,
यूँ ही चुप रहोगी तो कहो कैसे सुनाओगी ।

रोज़-रोज़ का मिलना बन चुका होगा आदत,
अब इस आदत को बोलो कैसे छुड़ाओगी ।

जुड़ तो चुका ही है मेरा नाम तेरे नाम के साथ,
अब इस नाम से खुद को कैसे बचाओगी ।

Thursday, December 6, 2007

गज़ल!

ताउम्र नहीं भूल पाऊँगा तुम्हे,
तेरी बेवफाई याद आती रहेगी हमें ।



दो अश्क बहाने से फायदा क्या है,
ग़म की मार तो खाती रहेगी हमें ।



बार-बार इल्तज़ा की, बार-बार ठुकरा दिया,
यही बात तो सताती रहेगी हमें ।



दिल का आईना चटक के चूर-चूर हुआ,
तस्वीर हर टुकड़े में नज़र आती रहेगी हमें ।



इक कली ही तो माँगी थी गुलशन से हमने,
जाने क्यों तकदीर काँटे चुभाती रहेगी हमें ।

Wednesday, December 5, 2007

गज़ल!

क्या ज़रूरत है बेवफाई का सबब जानने की,
ग़र वो प्यार न करें, तो उनसे प्यार माँगने की ।

दर्दे-दिल उनका दिया दिल में ही रहने दो,
उनकी मंशा नहीं है मेरा दर्द बाँटने की ।

दो लफ्ज़ भी ग़र कह देते अपनी ज़ुबाँ से वो,
वजह मिल जाती हमें हयात काटने की ।

दिल तो हमने ही दिया है बिन माँगे उनको,
फिर तकलीफ क्यों हो हमें दिल हारने की ।

बेशक न रखते वो मेरा दिल अपने पास,
पर तदबीर तो न करते वो हमें मारने की ।

Monday, December 3, 2007

अधूरा सपना!

एक अधूरा सपना था,
सपने में कोई अपना था,
वो आये तो टूटा सपना था,
पूरा जो होना सपना था !

हर भाव तेरे शीशे की तरह,
बस मेरा चेहरा दिखता था,
तुम लाख करो कोशिश अपनी,
हर बात में तेरी मैं ही था !

चुपचाप रहो चाहे जब तक,
नयनों की भाषा बोलेगी,
ये प्यार की मस्ती ऐसी है,
सब गाँठें खुद ही खोलेगी !

तेरा आना ज्यों सपना था,
पर मन का ये ही कहना था,
आओ सच में या ख्वाबों में,
तुमसे ही जीवन अपना था !

Thursday, November 29, 2007

अकेले कभी तो मिला करो!

तुम्हे मन की बात बतानी है,
कभी अकेले मिला करो ।
हमसे उम्मीद तुम्हारी है,
कभी तो कोई गिला करो ।

हम बात-बात में बात कहें,
जब औरों के तू साथ रहे,
तब नज़र चुराती हो हमसे,
इसलिये अकेले मिला करो ।

हमें पता है, पता तुम्हे सब है,
हम तुमसे क्या कहना चाहें,
तेरे दिल में भी बात वही,
कहने को अकेले मिला करो ।

Wednesday, November 28, 2007

गज़ल!

बड़ी छोटी रही तेरे ख्वाबों की रात,
आँख फिर से लगे तो बने कोई बात ।

दिल ने दिल से था वादा किया बार-बार,
ग़र मिल जायें वो अपनी कह दूंगा बात ।

सोचता ही रहा, देखता ही रहा,
उनके आने से भूला था सारी मैं बात ।

फिर से बुनने लगा ताने-बाने ये दिल,
ख्वाब में उनसे सारी कह लूँगा मैं बात ।

नींद आये अगर, ख्वाब आयें मुझे,
करवटें लेते थी कट जाती सारी ही रात ।

यूँ तड़पता नहीं, यूँ मचलता नहीं,
दिल ने मानी जो होती कभी मेरी बात ।

Tuesday, November 27, 2007

गज़ल!

और कोई बंधन न हो, पर दिल का बंधन तोड़ो ना,
जो है मेरे पास, है तेरा, इससे तुम मुख मोड़ो ना ।

बोलो चाहे न कुछ बोलो, मन को अपनी कहने दो,
दुनिया में रहना है मुश्किल, सपनों में तो रहने दो ।

मन में जो भी बात है तेरे, आ जाये इस चेहरे पे,
मुँह पर दिल की बात न लाने की जिद अब छोड़ो न ।

चाहे प्यार हो, चाहे नफरत, कोई रिश्ता तो है अपना,
अनकहा बना है जो भी रिश्ता, उसको अब तुम तोड़ो ना ।

Friday, November 23, 2007

ग़जल!

बिसरा दोगे तुम हमें, ये तो यकीं था,
जल्दी भुला दोगे इतना, किसको यकीं था ।

ग़र धूप न निकले तो बादल को मिले दोष,
मौसम को तो नाम कोई देता नहीं था ।

वादे तुम्हारे तो बस निकलीं थी बातें हीं,
जो मुँह पे तेरे था, वो दिल में नहीं था ।

पहली मुलाकात में थी जो गर्मजोशी,
मतलब निकलने के बाद उसका नाम नहीं था ।

बीता है ज़माना मिलते हुए बेवफाओं से,
तुमने जो किया, कुछ अलग तो नहीं था ।

Monday, November 19, 2007

फिर और एक दिन!

फिर
एक और दिन
तेरी
मधुर यादों से
भरा हुआ

पर
यह मन
अंदर ही अंदर
थोड़ा
डरा हुआ

कि
दिन कहीं
जल्दी से
बीते न
रात का आवरण
कहीं
जीते न

और
भटक जाऊँ
फिर से
मैं
इन अंधेरों में
और
रात का सूनापन
कभी
बीते न !

Saturday, November 17, 2007

गज़ल!

कोई उम्मीद तो नहीं तुमसे है,
फिर भी नाउम्मीद नहीं हूँ मैं ।

कोई सिर्फ बात ही करे हमसे,
इस बात का मुरीद नहीं हूँ मैं ।

उम्र भर खुद को जलाया मैंने,
पर किसी आँख का दीद नहीं हूँ मैं ।

खुदा है गुनहगार मेरा नज़र फेर कर,
तभी तो उसका आबिद नहीं हूँ मैं ।

जो दिया तूने वही तो लौटा पाऊँगा,
तभी हँसीं गज़लों का अदीब नहीं हूँ मैं ।

गज़ल!

मेरी मोहब्बत को दोस्ती का नाम न दो,
मोहब्बत करने वालों को ग़ल्त पैगाम न दो ।

साथ चलोगे तो रस्ते खुद ही मिल जायेंगें,
कोई ऐसी सुबह नहीं जिसकी शाम न हो ।

दुनिया के तानों से डर के क्यों बैठ गये,
कोई ऐसा शख्स नहीं जो कभी बदनाम न हो ।

जिंदगी की उलझनों को बहाना न बनाओ,
उलझनें न हों तो कोई भी कामयाब न हो ।

सोच में क्यों पड़े हो, मंज़ूरे-खुदा होने दो,
बस चुप ही रहो, अगर कोई जवाब न हो ।

Friday, November 16, 2007

मेरी हँसी!

मेरी हँसी, मेरे ग़मों की नकाब है,
उनके ढाए सितमों का जवाब है,
वो सोचते हैं उनकी ज्यादती से मिट जायेंगें हम,
अभी तो करना बाकी उनका हिसाब है ।

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मेरा हँसना न समझना कि खुशियों का है मिलना,
तू जो न हो, मेरी जिंदगी बनी इक टूटा सपना ।

दर्द दिल ने जो है पाला, उसमें तूने रंग डाला,
कैसे कह दूं मैं बता तू, ग़म ने तेरे मार डाला,
तेरे ग़म में भी मैं खुश हूँ, सारी दुनिया को दिखाना ।

अश्क बहते हैं कहाँ अब, सूनी आँखें हैं कहती सब,
रास्ते भी हैं कहतें अब, वो आयेंगें यहाँ कब,
अब तो राहें भी हैं कहतीं, इक बार फिर से आना ।

Thursday, November 15, 2007

सब बातें तुम सी हैँ !

क्या बात करूँ
इन वादियों से
ये भी तो
तुम बिन
चुप सी हैं

हवाएँ भी
खोजती हैं
तेरे
आँचल का साया
न जाने कहाँ ये
गुम सी हैं


कलियों ने भी
न खिलने की
कसम है खाई
ये भी गईँ
तुझ बिन
बुझ सी हैं

किसी भी
बात में
मन रमता नहीं अब
सभी बातें

लगती अब
तुम सी हैँ

Tuesday, November 13, 2007

गज़ल!

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कोशिश तो करेंगें तुम न याद आओ,
दिल ही अगर साथ न दे तो क्या करें ।

तुमने की थी ज़फा या थी मजबूरियाँ,
अपनी किस्मत हो ऐसी तो क्या करें ।

हम तो हरदम ही रस्ते भटकते रहे,
मंजिल छू के निकल जाये तो क्या करें ।

शाम आखिर तो आनी थी जिंदगी की कभी,
बादल दिन में जो घिर आयें तो क्या करें ।

रास्ते तुमने ज़ुदा हमसे कर तो लिये,
मोड़ खुद से ही मिल जायें तो क्या करें ।

Monday, November 12, 2007

गज़ल!

बेशक मुझे तेरे ग़म मिलें, बेशक मुझे रुलाएँ,
तेरी याद ग़र सताये, तो है और मन को भाये ।

हम लाख बार चाहें, दिल को नहीं रुलाना,
कोई चोट क्यों है मारे, हमको समझ न आये ।

क्यों हो गये वो रुसवा, रही दासताँ अधूरी,
दो पल भी न हुए थे, दिल को हमें लगाये ।

दुनिया बना के तू तो, बैठा है भूले सब कुछ,
ग़र तू भी दिल लगाये, तो वो भी टूट जाये ।

फितरत नहीं है अपनी, कहें बेवफा उन्हे हम,
बस ये ही सोचते हैं, उन्हे फिर से आजमायें ।

Sunday, November 11, 2007

गज़ल!

कोई वादा तो उसने किया न था,
जाने किस उम्मीद में कट गई जिंदगी ।

कभी अपने, कभी बेगाने से लगते हैं वो,
इसी शशोपंज में कट गई जिंदगी ।

उनके संग जीने की चाहत लिये,
मौत के इंतजार में कट गई जिंदगी ।

कभी तो आयेगा उनका पैगाम मेरे नाम,
राहें तक तक कट गई जिंदगी ।

किया होगा उन्होने कभी मेरा इंतजार,
इसी तसल्ली में कट गई जिंदगी ।

Friday, November 9, 2007

दिल की बातें दिल ही जाने!

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी


दिल की बातें, दिल ही जाने,
और कोई तो जाने ना,
प्यार की भाषा मन पहचाने,
और कोई पहचाने ना ।

उनके तन की खुशबू आती,
मीठी पवन जब अंगना आती,
साथ में उनकी यादें लाती,
मेरे मन को जो तड़पातीं,
कोई रोके पागल मन को,
मेरी बात तो माने ना ।

सीधा-सादा इँसा था मैं,
हरदम खुश था, हँसता था मैं,
जाने क्यों वीरानी लगें अब,
जिन राहों पर चलता था मैं,
कैसे पाऊँ फिर से खुशियाँ,
मन तो ये अब जाने ना ।

खोज रहा हूँ बस उस पल को,
खोई खुशियाँ जो लौटा दे,
जिससे खोलूँ दिल की बातें,
कोई वो भाषा समझा दे,
समझूँ मैं दुनिया की बातें,
पागल मन पहचाने ना ।
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